सुब्रत रॉय Sahara Scam 2010. Case study

Subrata Roy गाथा: Sahara Scam 2010 का अवलोकन Subrata Roy, जिन्हें अक्सर 'Sahara Shree' के नाम से जाना जाता है, भारत के सबसे विवादास्पद व्यापारियों में से एक हैं। 2010 में, Subrata Roy और उनकी कंपनी Sahara India Family पर एक बड़े Scam का आरोप लगा। इस scam ने भारतीय financial sector में हड़कंप मचा दिया और सुब्रत रॉय को कानूनी परेशानियों में डाल दिया।

Share this Post to earn Money ( Upto ₹100 per 1000 Views )


सुब्रत रॉय Sahara Scam 2010. Case study

SEBI की जवाबदेही

SEBI ने Sahara group पर आरोप लगाया कि उन्होंने investors से अवैध रूप से धन जुटाया। SEBI ने यह दावा किया कि Sahara की 2 कंपनियों, Sahara India Real Estate Corporation (SIRECL) और Sahara Housing Investment Corporation (SHICL) ने 2008 और 2009 के बीच लाखों निवेशकों से करीब 24,000 करोड़ रुपये जुटाए, बिना सही methods से उन्हें registered किए।

सुब्रत रॉय के खिलाफ कानूनी कार्यवाही – Sahara Scam 2010

Subrata Roy और उनकी कंपनियों पर लगे आरोपों के बाद, SEBI ने अदालत में मामला दर्ज किया। कई सुनवाइयों और कानूनी विवादों के बाद, 2012 में Supreme Court ने Sahara को निवेशकों का पैसा वापस करने का आदेश दिया। इस आदेश के बावजूद, Sahara ने समय पर पैसे नहीं लौटाए, जिसके परिणामस्वरूप Subrata Roy को 2014 में गिरफ्तार कर लिया गया। 

Subrata Roy द्वारा लगातार Money Laundering

सुब्रत रॉय और उनकी कंपनियों पर Money Laundering के भी गंभीर आरोप लगे। आरोप था कि Sahara ने निवेशकों का पैसा कई संदिग्ध तरीकों से अन्य कंपनियों और संपत्तियों में transfer किया। इस मामले ने उनके खिलाफ लगे आरोपों को और मजबूत कर दिया और उन्हें वित्तीय गड़बड़ी का प्रतीक बना दिया।

Subrata Roy अब कहां हैं और उनकी कुल संपत्ति क्या है?

सुब्रत रॉय फिलहाल जमानत पर बाहर हैं, लेकिन उन्हें Supreme Court के आदेशानुसार समय-समय पर अदालत में पेश होना पड़ता है। उनकी कुल संपत्ति का सटीक अनुमान लगाना मुश्किल है, लेकिन अनुमान है कि उनकी संपत्ति अरबों में है। 

सुब्रत रॉय की कहानी भारतीय कॉरपोरेट इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जो कानूनी प्रणाली, निवेशकों की सुरक्षा और वित्तीय नियमों के पालन की आवश्यकता को रेखांकित करती है। Sahara Scam 2010 ने यह स्पष्ट किया कि बड़े उद्योगपतियों को भी कानून के सामने झुकना पड़ता है और निवेशकों के हितों की रक्षा सर्वोपरि है।